Tuesday, May 10, 2011

राम-सेतु पर राम-हनुमान के बीच वार्तालाप...

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विशेष नोट : इस पोस्ट के लिए मेरी मौसेरी बहन रचना दिलीप कृष्णन को धन्यवाद देना चाहता हूं, जिसने यह मेल मुझे अंग्रेज़ी में भेजा था, और मैंने इसका अनुवाद कर दिया...
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भगवान श्रीरामचंद्र ने राम सेतु को निहारा तथा बोले, "हे हनुमान, तुमने और तुम्हारी वानर सेना ने कितनी मेहनत से कई शताब्दियों पहले इस शानदार सेतु का निर्माण किया था... तुम लोगों ने यह सेतु इतना मजबूत बनाया था था कि सदियों-सदियों से यह पर्यावरण की सभी विभीषिकाएं झेलता आ रहा है... यह सेतु तुम लोगों की सचमुच बेहद शानदार उपलब्धि है, विशेष रूप से आजकल की स्थिति में, जब 'गैमन' जैसी बड़ी निर्माण कंपनी का हैदराबाद में बनाया पुल उसके उद्घाटन से भी पहले ढह गया..."

हनुमान शिष्टता के साथ सिर झुकाकर बोले, "जय श्री राम... प्रभु, यह सब आपके वरदहस्त से ही संभव हो सका था... हमने तो सिर्फ पत्थरों पर आपका नाम लिख-लिखकर समुद्र में डाले थे, और वे तैरते गए... हमने तो इस सेतु के लिए न टिस्को से स्टील मंगाया था, न ही अम्बुजा अथवा एसीसी से सीमेंट मांगा... परंतु भगवन, आज आप गड़े मुर्दे क्यों उखाड़ रहे हैं...?"

राम ने कहा, "हनुमान, दरअसल धरती पर रहने वाले कुछ लोग हमारे इस सेतु को तोड़कर उसके स्थान पर एक नहर का निर्माण करना चाहते हैं... उस नहर के ठेके में करोड़ों-अरबों रुपया लगने जा रहा है, जिसे 'कमाने' के लिए तैयारियां जारी हैं... वे लोग तुम्हारे इस सेतु को तोड़ने में भी कमाएंगे, और फिर नहर बनवाकर तो उससे भी ज़्यादा कमाने वाले हैं..."

हनुमान ने श्रद्धाभाव से नतमस्तक होकर प्रश्न किया, "भगवन, क्यों न हम लोग पृथ्वी पर जाकर उन लोगों के समक्ष अपना पक्ष रखें...?"

राम ने ठंडी आह भरकर कहा, "जिस समय हम वहां थे, तब से अब तक समय बहुत बदल चुका है, हनुमान... सबसे पहले वे लोग हमसे आयु प्रमाणपत्र देने के लिए कहेंगे, और हम लोगों के पास जन्म प्रमाणपत्र या स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट है ही नहीं... हम लोगों के समय में लम्बी-लम्बी यात्राएं भी पैदल या रथों पर की जाती थीं, सो, हम लोगों के पास धरतीवासियों की तरह ड्राइविंग लाइसेंस भी नहीं हैं... जहां तक आवास प्रमाणपत्र का प्रश्न है, मेरा तो जन्मस्थान ही विवादों से घिरा हुआ है... पांच-छह दशक से मेरे जन्मस्थान पर विवाद न्यायालय में लंबित है... कुछ लोगों का तो यह भी दावा है कि मैं पैदा ही नहीं हुआ था... अब ऐसी स्थिति में यदि मैं अपनी परम्परागत वेशभूषा तथा धनुष-बाण लेकर पृथ्वी पर चला गया, तो संभव है, जनसाधारण मुझे पहचान ले, परंतु यदि अर्जुन सिंह मिल गए तो वह मुझे शर्तिया किसी जनजातीय कबीले में छोड़ आएंगे, और ज़्यादा से ज़्यादा मुझे आरक्षित कोटे से किसी आईआईटी में एक सीट दिलवा देंगे... और वैसे यदि मैं आज के मानव की वेशभूषा, अर्थात थ्री-पीस सूट, पहनकर जाऊं, और अपने आगमन की घोषणा करूं तो मेरे श्रद्धालुओं तक के मन में अविश्वास उत्पन्न हो जाएगा... सो, मैं तो जबरदस्त असमंजस में हूं..."

हनुमान ने पहले जैसी ही शिष्टता के साथ सिर झुकाकर कहा, "यदि आप अनुमति दें तो मैं आपकी बात की सत्यता सिद्ध करने के लिए गवाही दूंगा कि यह सेतु मैंने स्वयं बनाया था..."

राम फिर बोले, "प्रिय अंजनिपुत्र, मेरे विचार में इससे भी काम नहीं बनेगा... जब तुम इस सेतु के निर्माण का दावा करोगे, वे तुमसे ले-आउट प्लान, और वित्तीय व्यवस्था सहित प्रोजेक्ट की सारी डिटेल्स तो मांगेंगे ही, यह भी बताने के लिए कहेंगे कि ज़रूरी रकम का प्रबंध कैसे किया गया था... और सबसे बड़ी बात, वे तुमसे संपूर्णता प्रमाणपत्र (कम्प्लीशन सर्टिफिकेट) भी मांगेंगे... अब भारतवर्ष में कागज़ी प्रमाणों के बिना कोई भी सत्य स्वीकार नहीं किया जाता... स्थिति ऐसी हो चुकी है, कि तुम्हें लगातार खांसी होने के बावजूद जब तक डॉक्टर लिखकर न दे, तुम्हें बीमार नहीं माना जाएगा... कोई वृद्ध अपनी पेंशन लेने के लिए भले ही स्वयं अधिकारी के समक्ष जाकर खड़ा हो जाए, लिखित प्रमाणपत्र की अनुपस्थिति में उसे जीनित नहीं माना जाता, और उसे नियमित रूप से जीवित होने का प्रमाणपत्र देना पड़ता है... वत्स, व्यवस्था बहुत उलझ चुकी है अब..."

हनुमान फिर नतमस्तक हुए, और बोले, "प्रभु, आप सही कह रहे हैं, परंतु इन इतिहासकारों को मैं कभी नहीं समझ पाया... बीती सदियों में आप समय-समय पर सूरदास, तुलसीदास, त्यागराज, जयदेव, भद्राचल रामदास, और तुकाराम जैसे संतों को दर्शन देते रहे हैं, परंतु फिर भी यह आपके अस्तित्व को नकार देते हैं, तथा रामायण को काल्पनिक कथा बताते हैं... अब मेरे विचार में हमारे पास एक ही उपाय बचा है, कि हम रामायण को पृथ्वी पर दोबारा घटित करें, ताकि सरकारी दस्तावेज़ों में प्रमाण के रूप में सब कुछ दर्ज हो जाए..."

श्रीरामचंद्र मुस्कुराए, "अब वह भी सरल नहीं रहा, हनुमान... रावण को आशंका है कि करुणानिधि की उपस्थिति में वह कहीं संत न समझ लिया जाए... मैंने उसके मामा मारीच से भी बात की थी, जिसने वनवास के दौरान सीता को सुनहरा मृग बनकर ललचाया था, परंतु वह भी अब डर रहा है, और सलमान खान के रहते पृथ्वी पर अवतरित होने के लिए कतई तैयार नहीं है... शूर्पनखा अब आज की नारी हो गई है, और उन्हीं की तरह ब्यूटी-कॉन्शस हो जाने के कारण नाक कटवाने के लिए तैयार नहीं है... दोनों किष्किन्धा नरेश बालि तथा सुग्रीव अब दरअसल कॉरपोरेट चलाते हैं, सो, मतभेदों के बावजूद सार्वजनिक रूप से झगड़ा करने के लिए राजी नहीं हैं... और देशभर में जातिवाद की राजनीति इस कदर फैल चुकी है कि यदि मैंने शबरी के हाथ से बेर खा लिए तो मुमकिन है, मायावती इसे उनके वोट बैंक पर डाका समझें और भाई मेरे, मेरी जन्मस्थली उनके राज्य में ही है... मेरे कहने का तात्पर्य यह है, वत्स, फिलहाल भारतवर्ष में समस्याएं ही समस्याएं हैं, सो, हमारे लिए बेहतर यही होगा कि हम अगले युग की प्रतीक्षा करें..."
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विशेष नोट : इस पोस्ट के लिए मेरी मौसेरी बहन रचना दिलीप कृष्णन को धन्यवाद देना चाहता हूं, जिसने यह मेल मुझे अंग्रेज़ी में भेजा था, और मैंने इसका अनुवाद कर दिया...
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