Wednesday, January 06, 2010

फौजियों के बीच फंसे संता सिंह...

संता सिंह को घर से निकलने में देर हो गई, सो, भागते-भागते रेलवे स्टेशन पहुंचे, लेकिन ट्रेन प्लेटफार्म से सरकना शुरू कर चुकी थी, सो, जो बोगी सामने दिखी, उसी में लटक गए...

अंदर घुसे तो देखा, पूरा डिब्बा फौजियों ने कब्जा रखा था, और हर तरफ से ठहाकों की आवाज़ें गूंज रही थीं...

संता ने सुन रखा था, कि फौजी सिविलियन लोगों की बहुत खिंचाई करते हैं, यानि मज़ाक उड़ाते हैं, सो, उसने तय किया कि एक कोने में दुबककर बैठा रहूंगा, और अगले ही स्टेशन पर बोगी बदल लूंगा...

लेकिन कितनी देर तक छिप सकते थे, सो, आखिरकार फौजियों की नज़र उन पर पड़ ही गई, और उन्होंने कहा, "सरदार साहब, यहीं हम लोगों के पास आ जाइए, और आराम से बैठिए..."

संता ने टालने की कोशिश करते हुए जवाब दिया, "बस जी बस, शुक्रिया... मैं ऐत्थे ही ठीक हां..." ("बस जी बस, शुक्रिया... मैं यहीं ठीक हूं...")

फौजियों ने इसके बाद भी ज़ोर दिया, तो संता पहुंच गए उनके बीच...

बस, अब फौजियों ने उन्हें घेर लिया, और सवालों की झड़ी लगा दी - आप कहां के रहने वाले हो, आपका नाम क्या है, आप कहां जा रहे हो, वगैरह वगैरह...

संता ने भी मन ही मन अगले स्टेशन तक का सफर आराम से काटने की गरज से शांति से उनके सवालों के जवाब देने शुरू कर दिए...

"जी, मेरा नां संता सिंह ए, असी पंजाब रहीदा ए, ते अगले स्टेशन तक ही जाणा ए..." ("जी, मेरा नाम संता सिंह है, मैं पंजाब का रहने वाला हूं, और अगले स्टेशन तक ही जाना है मुझे...")

अचानक फौजियों ने शोर किया और संता से अगला सवाल किया, "एक बात बताओ, सरदार जी... आपके पंजाब के गांवों में एक रिवाज के बारे में हमने सुना है... एक भाई की शादी हो जाने पर सभी भाई उसकी बीवी के साथ सोते हैं... क्या यह सच है...?"

संता को उनकी हां में हां मिलाते रहने में ही अपनी खैर नज़र आई, सो, वह बोला, "आहो जी, ए गल बिल्कुल सच ए जी..." ("हां जी, यह बात बिल्कुल सच है जी...")

फौजियों ने फिर पूछा, "लेकिन जब बाकी भाइयों की भी शादी हो जाती है, तो क्या उनकी बीवियां भी बड़े भाइयों के साथ जाकर सोती हैं...?"

संता ने इस बार भी बड़े प्यार से जवाब दिया, "आहो जी, तुसी खुद ही सोचो... जद वड्डे भ्रा दी वोटी छोटे दे नाल सोवेगी, तां वड्डा किवें छड देगा छोटे दी वोटी नूं..." ("हां जी, आप खुद ही सोचो... जब बड़े भाई की पत्नी छोटे के साथ सोएगी, तो बड़ा कैसे छोड़ देगा छोटे की पत्नी को...")

फौजियों ने खिंचाई के अगले चरण पर पहुंचते हुए अगला सवाल दागा, "यार, आप लोगों को शर्म नहीं आती, ऐसी हरकतें करने में...?"

संता ने भी आराम से जवाब दिया, "कादी शरम जी... ऐ ते रिवाज ने, ते रिवाजां'च शरम कादी...?" ("किस बात की शर्म जी... ये तो रिवाज हैं, और रिवाजों को मानने में शर्म किस बात की...?")

अब फौजियों ने सवालों की दिशा बदलते हुए पूछा, "अच्छा यह बताइए, जब एक औरत सभी भाइयों के साथ सोती है, तो उसके बच्चों को कौन-सा भाई पालता है...?"

अब भी संता ने धीरज खोए बिना आराम से कहा, "वेखो जी, जद औरत कह देंदी ए, कि होर न्याणे नईं करने, तां घर दा पाय्या सारे न्याणयां नूं बरामदे'च मंजी ते पा देंदा ए, ते फेर ओ सारे भ्रावां नूं कट्ठा करके दसदा ए - ऐस न्याणे दी शकल तेरे नाल मिलदी ए, तू पाल... या ओस न्याणे दी शकल तेरे नाल मिलदी ए, तू पाल..." ("देखो जी, जब औरत यह कह देती है कि अब वह और बच्चे पैदा नहीं करना चाहती, घर का बुजुर्ग सारे बच्चों के बरामदे में एक चारपाई पर रख देता है, और सारे भाइयों को इकट्ठा करके बताता है - इस बच्चे की शक्ल तुझसे मिलती है, इसे तू पाल... या उस बच्चे की शक्ल तुझसे मिलती है, इसे तू पाल...")

फौजियों ने फिर सवाल दागा, "यार, लेकिन ऐसे बच्चे भी तो होते होंगे, जिनकी शक्ल किसी भाई से नहीं मिलती होगी... उन बच्चों का क्या करते हो...?"

इस बार संता ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "करणा की ए जी, सालयां नूं फौज'च भरती करा देंदे ने..." ("करना क्या है जी, उन सालों को फौज में भर्ती करा देते हैं...")

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