Friday, July 23, 2010

सार्थक, और संता सिंह की चारपाई...

हमारे घर अचानक कुछ मेहमान आ गए, रात को रुकने का कार्यक्रम बनाकर, सो, चारपाइयां कम पड़ गईं...

मेरी पत्नी और बच्चे भी चिंता में पड़ गए कि कहीं से भी चारपाइयां नहीं जुट पाईं, तो मेहमान कहां सोएंगे...

मैंने अपनी पत्नी से कहा, "परेशान होने की ज़रूरत नहीं, भाग्यवान... पड़ोस में संता सिंह के घर से चारपाई मांग लेते हैं..."

इतना कहकर मैंने अपने बेटे शरारती सार्थक से कहा, "जा बेटे, संता अंकल से जाकर अपनी परेशानी बताना, और एक चारपाई मांग लेना..."

शरारती सार्थक तुरंत संता के घर जा पहुंचा, और जैसे ही संता ने दरवाज़ा खोला, सार्थक ने अपनी दिक्कत बताई...

संता ने चेहरे पर शर्मिन्दगी के भाव लाते हुए कहा, "बेटे, मैं माफी चाहता हूं, लेकिन मेरे घर में दो ही चारपाइयां हैं, एक पर मेरी मां और मेरी पत्नी सोते हैं, और दूसरी पर मैं और मेरे पिताजी..."

सार्थक ने तपाक से कहा, "अंकल, इसमें माफी मांगने जैसी तो कोई बात नहीं है, लेकिन आप लोग सोना तो सीख लो..."

3 comments:

  1. संतासिंह का दोष नहीं है.

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  2. तो फिर किसका दोष है, सुब्रमण्यम भाई...?

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