एक कवि सम्मेलन में काफी देर तक कवितापाठ करते रहे कवि महोदय के पास जाकर शरारती सार्थक ने कहा, "मान गए जनाब, आपने तो मुझे आश्चर्यचकित कर दिया..."
कवि महोदय प्रसन्न दिखने लगे, और बोले, "अच्छा... आश्चर्य किस बात का, बेटे... यही कि मैं ये कविताएं कैसे लिखता हूं...?"
शरारती सार्थक ने तपाक से कहा, "नहीं, नहीं... आश्चर्य इस बात का, कि आप ये कविताएं क्यों लिखते हैं...?"
कवि महोदय प्रसन्न दिखने लगे, और बोले, "अच्छा... आश्चर्य किस बात का, बेटे... यही कि मैं ये कविताएं कैसे लिखता हूं...?"
शरारती सार्थक ने तपाक से कहा, "नहीं, नहीं... आश्चर्य इस बात का, कि आप ये कविताएं क्यों लिखते हैं...?"
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