Wednesday, December 02, 2009

तस्कर संता सिंह...

कंधे पर एक बड़ा-सा बैग लटकाए मोटर साइकिल पर सवार होकर पाकिस्तान से हिन्दुस्तान आते समय संता सिंह को हिन्दुस्तानी बॉर्डर पोस्ट पर रोका गया...

दरोगा बंता सिंह ने कड़ककर पूछा, "तेरे बैग में क्या है...?"

संता सिंह ने नम्रतापूर्वक जवाब दिया, "रेत है, साबजी..."

दरोगा बंता सिंह को उसके जवाब से संतोष नहीं हुआ, सो, उसने सिपाहियों को बैग की तलाशी लेने का आदेश दिया, लेकिन बैग में रेत के अलावा सचमुच कुछ नहीं मिला...

मजबूरन बंता सिंह को उसे छोड़ना पड़ा...

कुछ दिन बाद फिर इसी तरह संता सिंह मोटर साइकिल पर सवार होकर कंधे पर बैग लटकाए रोका गया...

बंता सिंह ने फिर बैग की तलाशी ली, परंतु इस बार भी उसमें से रेत के अलावा कुछ भी आपत्तिजनक नहीं निकला...

संता सिंह फिर छोड़ दिया गया...

फिर ऐसा हर हफ्ते होने लगा, सो, बंता सिंह का शक भी बढ़ने लगा, लेकिन कोई सबूत हाथ न लगने से संता सिंह हर बार बचकर निकल जाता था...

लगभग एक साल तक यही क्रम चलता रहा, फिर एकाएक संता सिंह का आना बंद हो गया...

कुछ महीने बाद जब बंता सिंह छुट्टी पर घर आया, तब उसने संता सिंह को दिल्ली के एक महंगे रेस्तरां में कॉफी की चुस्कियां लेते देखा, तो खुद को उसके पास जाकर उससे बात करने से रोक नहीं पाया...

उसने संता से कहा, "यार, एक बात बता... विश्वास कर, यह सिर्फ तेरे और मेरे बीच ही रहेगा...

संता मुस्कुराकर बोला, "पूछ दोस्त, कुछ भी पूछ ले..."

बंता सिंह ने दोस्ताना लहजे में पूछा, "मुझे पूरा यकीन है कि तू किसी चीज की तस्करी कर रही था, लेकिन वह क्या चीज़ थी, जो मेरी नज़रें पकड़ नहीं सकीं, क्योंकि वह चीज़ कम से कम रेत तो बिल्कुल नहीं थी..."

संता सिंह ने फिर मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "मोटर साइकिल..."

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