एक लकड़हारा नदी किनारे पेड़ पर कुल्हाड़ी लिए बैठा था, और लकड़ी काट रहा था कि अचानक उसकी कुल्हाड़ी नदी में गिर गई...
गरीब लकड़हारे ने रोना शुरू कर दिया, क्योंकि कुल्हाड़ी के बिना उसके घर का जूल्हा जलना तक नामुमकिन हो जाता...
उसका रोना सुनकर एक देवदूत जल से बाहर आया, और पूछा, "क्यों रो रहे हो तुम...?"
लकड़हारे ने रोते हुए ही जवाब दिया, "अब क्या बताऊं मैं आपको... दरअसल मेरी कुल्हाड़ी नदी में गिर गई है, और अगर कुल्हाड़ी नहीं मिली तो मैं लकड़ी नहीं काट पाऊंगा, और जब मेरे पास लकड़ी नहीं होगी तो मैं क्या बेचकर पैसे कमाऊंगा, और जब पैसे नहीं होंगे तो फिर मेरे बीवी-बच्चों का पेट कैसे भरूंगा...?"
देवदूत को लकड़हारे पर तरस आ गया, और वह नदी में उतर गया, और कुछ ही पल बाद सोने से बनी एक कुल्हाड़ी लाकर लकड़हारे को दिखाकर पूछा, "क्या यही तुम्हारी कुल्हाड़ी है...?"
लकड़हारा बोला, "नहीं, यह तो सोने की बनी हुई है, और अगर मुझ गरीब के पास सोने की कुल्हाड़ी खरीदने लायक पैसा होता तो मैं एक कुल्हाड़ी के खो जाने पर इस तरह क्यों रोता...?"
देवदूत फिर नदी में उतर गया, और इस बार वह चांदी से बनी कुल्हाड़ी लाया, और लकड़हारे से सवाल किया, "क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है...?"
लकड़हारा फिर बोला, "आप मेरी गरीबी का मज़ाक उड़ा रहे हैं क्या...? यह चांदी की बनी हुई कुल्हाड़ी है, और मुझ गरीब के पास यह कैसे हो सकती है...?"
देवदूत तीसरी बार नदी में उतरा, और इस बार लकड़हारे की लोहे की बनी कुल्हाड़ी लाकर बोला, "यही तुम्हारी कुल्हाड़ी है न...?"
लकड़हारा तुरन्त खुश हो गया, और बोला, "आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, भगवन... आपने मुझे और मेरे परिवार को भूखे मरने से बचा लिया..."
देवदूत बोला, "मैं तुम्हारी ईमानदारी से बहुत प्रसन्न हुआ हूं... बेहद गरीब होने के बावजूद तुमने सोने और चांदी की महंगी कुल्हाड़ियों का लालच नहीं किया, इसलिए अब ये तीनों कुल्हाड़ियां तुम रख सकते हो..."
लकड़हारा भी खुशी-खुशी घर लौट गया...
परन्तु कुछ ही वर्ष बाद गर्मियों के मौसम में एक दिन लकड़हारा अपनी पत्नी के साथ उसी नदी के पास से गुजरा, तो पत्नी की इच्छा नदी स्नान की हो आई...
नहाने के लिए जैसे ही पत्नी पानी में उतरी, पांव फिसल जाने के कारण नदी में डूब गई, और बेचारा लकड़हारा फिर रोने लगा...
कुछ ही पल में देवदूत फिर पानी से निकला, और पूछा, "क्यों रो रहे हो तुम...?"
लकड़हारे ने अपनी विपदा बताई, देवदूत तुरन्त नदी में उतरा, और करीना कपूर को लाकर पूछा, "क्या यही तुम्हारी पत्नी है...?"
लकड़हारे ने तुरन्त 'हां' कह दिया, जिससे देवदूत गुस्सा हो गया, और बोला, "तुम्हें शर्म नहीं आती... तुम्हारी ईमानदारी पर मुझे गर्व था, लेकिन तुमने आज मुझे निराश कर दिया..."
लकड़हारे ने तुरन्त कहा, "नहीं, नहीं भगवन... आप क्रोधित न हों... मेरे इस प्रकार झूठ बोलने के पीछे एक ठोस कारण है, जिसे आप सुन लीजिए... आज जैसे ही आप प्रकट हुए, मेरे दिमाग में पिछला नुभव कौंध गया... आप अभी करीना कपूर को लेकर आए थे, जिसे स्वीकार करने से मुझे इन्कार कर देना चाहिए था... परन्तु ऐसा होने पर आप अगली बार दीपिका पादुकोन को लेकर आते, मैं फिर भी इन्कार कर देता, और तीसरी बार में आप मेरी पत्नी को लेकर आते, और मैं उसे स्वीकार कर लेता, तो आप तीनों मुझे दे जाते... इसमें समस्या यह हो जाती कि मैं आज भी इतना अमीर नहीं हुआ हूं, कि तीनों पत्नियों के नखरे और खर्चे उठा सकूं, इसलिए मैंने करीना कपूर के लिए हामी भर दी..."
इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि पुरुष कभी अकारण झूठ नहीं बोलते...
उसका रोना सुनकर एक देवदूत जल से बाहर आया, और पूछा, "क्यों रो रहे हो तुम...?"
लकड़हारे ने रोते हुए ही जवाब दिया, "अब क्या बताऊं मैं आपको... दरअसल मेरी कुल्हाड़ी नदी में गिर गई है, और अगर कुल्हाड़ी नहीं मिली तो मैं लकड़ी नहीं काट पाऊंगा, और जब मेरे पास लकड़ी नहीं होगी तो मैं क्या बेचकर पैसे कमाऊंगा, और जब पैसे नहीं होंगे तो फिर मेरे बीवी-बच्चों का पेट कैसे भरूंगा...?"
देवदूत को लकड़हारे पर तरस आ गया, और वह नदी में उतर गया, और कुछ ही पल बाद सोने से बनी एक कुल्हाड़ी लाकर लकड़हारे को दिखाकर पूछा, "क्या यही तुम्हारी कुल्हाड़ी है...?"
लकड़हारा बोला, "नहीं, यह तो सोने की बनी हुई है, और अगर मुझ गरीब के पास सोने की कुल्हाड़ी खरीदने लायक पैसा होता तो मैं एक कुल्हाड़ी के खो जाने पर इस तरह क्यों रोता...?"
देवदूत फिर नदी में उतर गया, और इस बार वह चांदी से बनी कुल्हाड़ी लाया, और लकड़हारे से सवाल किया, "क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है...?"
लकड़हारा फिर बोला, "आप मेरी गरीबी का मज़ाक उड़ा रहे हैं क्या...? यह चांदी की बनी हुई कुल्हाड़ी है, और मुझ गरीब के पास यह कैसे हो सकती है...?"
देवदूत तीसरी बार नदी में उतरा, और इस बार लकड़हारे की लोहे की बनी कुल्हाड़ी लाकर बोला, "यही तुम्हारी कुल्हाड़ी है न...?"
लकड़हारा तुरन्त खुश हो गया, और बोला, "आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, भगवन... आपने मुझे और मेरे परिवार को भूखे मरने से बचा लिया..."
देवदूत बोला, "मैं तुम्हारी ईमानदारी से बहुत प्रसन्न हुआ हूं... बेहद गरीब होने के बावजूद तुमने सोने और चांदी की महंगी कुल्हाड़ियों का लालच नहीं किया, इसलिए अब ये तीनों कुल्हाड़ियां तुम रख सकते हो..."
लकड़हारा भी खुशी-खुशी घर लौट गया...
परन्तु कुछ ही वर्ष बाद गर्मियों के मौसम में एक दिन लकड़हारा अपनी पत्नी के साथ उसी नदी के पास से गुजरा, तो पत्नी की इच्छा नदी स्नान की हो आई...
नहाने के लिए जैसे ही पत्नी पानी में उतरी, पांव फिसल जाने के कारण नदी में डूब गई, और बेचारा लकड़हारा फिर रोने लगा...
कुछ ही पल में देवदूत फिर पानी से निकला, और पूछा, "क्यों रो रहे हो तुम...?"
लकड़हारे ने अपनी विपदा बताई, देवदूत तुरन्त नदी में उतरा, और करीना कपूर को लाकर पूछा, "क्या यही तुम्हारी पत्नी है...?"
लकड़हारे ने तुरन्त 'हां' कह दिया, जिससे देवदूत गुस्सा हो गया, और बोला, "तुम्हें शर्म नहीं आती... तुम्हारी ईमानदारी पर मुझे गर्व था, लेकिन तुमने आज मुझे निराश कर दिया..."
लकड़हारे ने तुरन्त कहा, "नहीं, नहीं भगवन... आप क्रोधित न हों... मेरे इस प्रकार झूठ बोलने के पीछे एक ठोस कारण है, जिसे आप सुन लीजिए... आज जैसे ही आप प्रकट हुए, मेरे दिमाग में पिछला नुभव कौंध गया... आप अभी करीना कपूर को लेकर आए थे, जिसे स्वीकार करने से मुझे इन्कार कर देना चाहिए था... परन्तु ऐसा होने पर आप अगली बार दीपिका पादुकोन को लेकर आते, मैं फिर भी इन्कार कर देता, और तीसरी बार में आप मेरी पत्नी को लेकर आते, और मैं उसे स्वीकार कर लेता, तो आप तीनों मुझे दे जाते... इसमें समस्या यह हो जाती कि मैं आज भी इतना अमीर नहीं हुआ हूं, कि तीनों पत्नियों के नखरे और खर्चे उठा सकूं, इसलिए मैंने करीना कपूर के लिए हामी भर दी..."
इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि पुरुष कभी अकारण झूठ नहीं बोलते...
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