सार्थक के पिता उसके लिए एक खिलौना रेलगाड़ी खरीदकर लाए...
सार्थक को रेलगाड़ी देने के कुछ देर बाद वह जब बेटे के कमरे में गए तो देखा कि सार्थक रेलगाड़ी से खेल रहा है, और स्टेशन पर ट्रेन के रुकते ही कहता है, "जिस उल्लू के पट्ठे को चढ़ना है, चढ़ जाए, और जिस उल्लू के पट्ठे को उतरना है, उतर जाए... गाड़ी सिर्फ दो मिनट रुकेगी..."
बेटे के मुंह से गाली-गलौज वाली भाषा सुनकर सार्थक के पिता का पारा चढ़ गया...
उन्होंने सार्थक की कनपटी पर दो तमाचे लगाए और आइंदा इस तरह से न बोलने की चेतावनी देते हुए कहा, "मैं दो घंटे के लिए बाज़ार जा रहा हूं... तब तक तुम सिर्फ पढ़ोगे..."
दो घंटे बाद जब वह घर लौटे तो सार्थक को पढ़ाई करते पाया...
कुछ ही मिनट में उनका दिल पसीज गया और उन्होंने सार्थक को फिर रेलगाड़ी से खेलने की इजाजत दे दी...
कुछ मिनट बाद सार्थक की भाषा जांचने के उद्देश्य से वह बेटे के कमरे में गए...
इस बार सार्थक कह रहा था, "जिन साहब को चढ़ना है, चढ़ जाएं, और जिन साहब को उतरना है, उतर जाएं... गाड़ी सिर्फ एक मिनट रुकेगी, क्योंकि एक उल्लू के पट्ठे की वजह से हम पहले ही दो घंटे लेट चल रहे हैं..."
चुटकुला ऐसी संज्ञा है, जिससे कोई भी अपरिचित नहीं... हंसने-हंसाने के लिए दुनिया के हर कोने में इसका प्रयोग होता है... खुश रहना चाहता हूं, खुश रहना जानता हूं, सो, चुटकुले लिखने-पढ़ने और सुनने-सुनाने का शौकीन हूं... कुछ चुनिंदा चुटकुले, या हंसगुल्ले, आप लोगों के सामने हैं... सर्वलोकप्रिय श्रेणियों 'संता-बंता', 'नॉनवेज चुटकुले', 'पति-पत्नी' के अलावा कुछ बेहतरीन हास्य कविताएं और मेरी अपनी श्रेणी 'शरारती सार्थक' भी पढ़िए, और खुद को गुदगुदाइए...
Wednesday, November 25, 2009
सार्थक की रेलगाड़ी...
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बेचारे पापा :-)
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