Wednesday, August 31, 2011

नादान संता सिंह की शादी, और मंझे हुए बंता सिंह...

नादान संता सिंह की शादी तय हुई तो परेशान रहने लगे...

दूर किसी शहर में रहने वाले उनके मित्र बंता सिंह उनकी शादी में शरीक होने पहुंचे, तो सवाल कर बैठे, "क्या हुआ, दोस्त... इतने दुखी क्यों हो...?"

संता ने परेशानी बांटते हुए कहा, "यार, क्या बताऊं... शादी होने वाली है, और मुझे कुछ आता ही नहीं... बस, यही डर सताता रहता है कि कहीं सुहागरात पर ही बेइज़्ज़ती न हो जाए..."

बंता ने संता का कंधा थपथपाते हुए कहा, "दुखी न हो, दोस्त, हम मंझे हुए खिलाड़ी हैं... चल हमारे साथ, सब सिखा देंगे एक ही रात में..."

सो, संता को साथ लेकर बंता पहुंच गए रेडलाइट एरिया में, और किस्मत देखिए, जैसे ही कमरे में घुसने लगे, बिजली चली गई...

बहरहाल, सिखाने का वादा था, सो, एक लालटेन ली, और संता को पकड़ाकर बोले, "तू इसे पकड़कर खड़ा रह, और देखता जा, मैं क्या-क्या कैसे-कैसे करता हूं..."

संता लालटेन थामे हुए उसकी रोशनी में सब कुछ बहुत ध्यान से देखते रहे, और फिर बिस्तर से उठकर बंता ने पूछा, "समझ आया कुछ, या अब भी कोई दुविधा है...?"

संता ने चहकते हुए जवाब दिया, "अरे यार, यह तो बहुत आसान है... मज़े से कर सकता हूं... अब मेरी सारी समस्या दूर हो गई..."

खैर, इसके बाद दोनों दोस्तों की मुलाकात लगभग पांच साल बाद बाज़ार में हुई, तो पुरानी यादें ताज़ा करने के लिए कॉफी शॉप में जाकर बैठ गए...

एक-दूसरे से हालचाल पूछने के बाद बंता ने पूछा, "और बता, यार... शादीशुदा ज़िन्दगी में कोई परेशानी तो नहीं...?"

संता ने भावुक होकर कहा, "बिल्कुल नहीं, दोस्त... मैं हमेशा उसके लिए तुम्हारा एहसानमंद रहूंगा... मेरी शादीशुदा ज़िन्दगी बहुत मज़े से कट रही है, और दो बच्चे भी हैं..."

बंता ने बधाई देते हुए, शरारती स्वर में अगला सवाल किया, "कभी-कभी बिस्तर में नयापन लाने के लिए भी कुछ करता है या बस, वैसे ही चल रहा है...?"

संता ने जवाब दिया, "कुछ खास नहीं... कभी लालटेन दाएं हाथ से पकड़ लेता हूं, कभी बाएं हाथ से..."

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