विशेष नोट : अधिकतर बच्चों की तरह मेरे आदर्श भी मेरे पिता ही रहे हैं... सरकारी नौकरी छोड़कर मेरे पत्रकार बन जाने की एकमात्र वजह भी यही थी कि वह पत्रकार थे... अपने कॉलेज के समय में वह 'शैल' उपनाम से कविता भी किया करते थे, सो, आज उनकी डायरी से एक हास्य कविता आप सबके लिए प्रस्तुत कर रहा हूं... यह कविता उनकी डायरी के मुताबिक 28 दिसम्बर, 1964 को लिखी गई थी...
बहुत सोचता हूं, मगर कैसे हो यह,
मुझे मेरा स्वामी गधा इक बना दे...
जानता हूं, हंसोगे, हंसो खूब खुलकर,
मगर मुझको भगवन, गधा अब बना दे...
है बर्दाश्त कितनी, यह सब कुछ है सहता,
कोई दे ले गाली, या फिर पीट डाले,
नहीं चूं करेगा, कभी यह बेचारा,
मुझे मेरे भगवन, गधा अब बना दे...
मार कब तक सहूं, अपनी बीवी की हरदम,
औ' बच्चे मेरे, मुझको आंखें दिखाते,
इसी से तमन्ना यह भारी मेरी है,
मुझे मेरे भगवन, गधा अब बना दे...
जो विद्वान होगा, वह गंभीर होगा,
इसे हम यहां पर सदा सत्य पाते,
गधे-सा नहीं और गंभीर होता,
मुझे मेरे भगवन, गधा अब बना दे...
दफ्तर में गाली सहूं बॉस की मैं,
घर में बच्चों की अपने सवारी बनूं मैं,
बीवी का प्यारा रहूं मैं हमेशा,
अगर मुझको भगवन, गधा अब बना दे...
चुटकुला ऐसी संज्ञा है, जिससे कोई भी अपरिचित नहीं... हंसने-हंसाने के लिए दुनिया के हर कोने में इसका प्रयोग होता है... खुश रहना चाहता हूं, खुश रहना जानता हूं, सो, चुटकुले लिखने-पढ़ने और सुनने-सुनाने का शौकीन हूं... कुछ चुनिंदा चुटकुले, या हंसगुल्ले, आप लोगों के सामने हैं... सर्वलोकप्रिय श्रेणियों 'संता-बंता', 'नॉनवेज चुटकुले', 'पति-पत्नी' के अलावा कुछ बेहतरीन हास्य कविताएं और मेरी अपनी श्रेणी 'शरारती सार्थक' भी पढ़िए, और खुद को गुदगुदाइए...
Friday, December 18, 2009
हे भगवन, मुझे गधा बना दे... (राम अवतार रस्तोगी 'शैल')
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