Wednesday, March 02, 2011

संता-बंता के अरबी घोड़े, और शरारती सार्थक...

संता सिंह और बंता सिंह मेले में गए, जहां उन्होंने बिल्कुल एक जैसे चेहरे-मोहरे और एक जैसी कद-काठी के दो अरबी घोड़े खरीद लिए...

जब दोनों फार्महाउस पर पहुंचे, उन्होंने पहचान के लिए एक घोड़े की गर्दन में सफेद रूमाल बांध दिया, और तय किया - रूमाल वाला घोड़ा संता का और बिना रूमाल वाला दूसरा घोड़ा बंता का...

लेकिन उनके पड़ोस में रहने वाले शरारती सार्थक को शैतानी सूझी और उसने रात को फार्महाउस में घुसकर दूसरे घोड़े की गर्दन पर भी वैसा ही रूमाल बांध दिया...

अगले दिन संता-बंता यह देखकर परेशान हो गए, और सोचने लगे, "इस तरह की निशानी से काम नहीं बनेगा, हमें कोई स्थायी निशानी बनानी पड़ेगी..."

और फिर सोच-विचार के बाद उन्होंने एक घोड़े का एक कान काट देने का फैसला किया और तय किया - दोनों कान वाला घोड़ा संता का और एक कान वाला दूसरा घोड़ा बंता का...

विचार पर अमल करने के बाद दोनों चैन की नींद सो गए, लेकिन सार्थक को चैन कहां...

वह रात को फिर फार्महाउस में घुसा, और दूसरे घोड़े का भी एक कान काट डाला...

सुबह संता-बंता फिर हैरान-परेशान...

इस बार उन्होंने एक घोड़े का पांव काट डालने का फैसला किया और तय किया - चारों पैर वाला घोड़ा संता का और तीन पैर वाला दूसरा घोड़ा बंता का...

दोनों रात को सोने गए, और सार्थक इस बार भी अपनी कारगुज़ारी से बाज़ नहीं आया...

अगले दिन संता-बंता फिर परेशान...

इस बार पीछे का भी एक पैर काट देने का फैसला हुआ और तय किया गया - तीन पैर वाला घोड़ा संता का और दो पैर वाला दूसरा घोड़ा बंता का...

दोनों सोने गए, और सार्थक फिर हाज़िर फार्महाउस में...

अगले दिन संता-बंता फिर दुखी और परेशान...

अब उन्हें कोई उपाय भी नहीं सूझ रहा था, सो, सलाह मांगने के लिए किसी को तलाशने लगे कि अचानक सार्थक उन्हें दिखा, और उन्होंने इशारे से उसे बुलाया...

सार्थक वहां पहुंचा और मुस्कुराता हुआ बोला, "अंकल नमस्ते... कहिए, कुछ काम था क्या...?"

संता-बंता ने उसे अपनी परेशानी, और रोज़ाना रात को हो रही घटनाओं के बारे में बताया और बोले, "बेटा, अब हमें कुछ ऐसा तरीका बता, जिससे घोड़े का कोई और अंग भी न काटना पड़े, और पहचान भी बन जाए..."

सार्थक ने कुटिल मुस्कान के साथ तपाक से जवाब दिया, "बहुत आसान है... सफेद घोड़ा संता अंकल रख लेंगे, और काला घोड़ा बंता अंकल रख लेंगे..."

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