'मौजूदा शिक्षा व्यवस्था' विषय पर आयोजित की गई निबन्ध प्रतियोगिता में शरारती सार्थक का लिखा निबन्ध अस्वीकार कर दिया गया, सो, घर आकर गुस्से से बोला, "सच सुनने की ताकत ही नहीं रही है किसी में... बस, पढ़ा और फेंक दिया..."
पिता ने उलझन-भरे स्वर में पूछा, "निबन्ध में क्या लिखा था तुमने...?"
सार्थक ने तपाक से कॉपी पिता की तरफ बढ़ाई, जिसमें लिखा था, "मौजूदा शिक्षा व्यवस्था से मेरा और मेरी पीढ़ी के सभी साथियों का एक ही सवाल है - अगर एक ही अध्यापक सभी विषय पढ़ा नहीं सकता, तो हम छात्रों से यह आशा कैसे की जा सकती है कि एक ही छात्र सभी विषयों को समझ और याद कर सकता है..."
सालों पहले से यही बात हम भी पूछना चाह रहे थे। शुक्रिया सार्थक ;-)
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