संता सिंह के पड़ोस में रहने वाले शरारती सार्थक ने एक दिन सड़क पर केले का छिलका डाल दिया, जिस पर पांव पड़ने से संता धड़ाम से गिरे...
अगले दिन भी सार्थक ने यही किया, लेकिन संता ने छिलका पहले ही देख लिया, और सोच में पड़ गए...
सार्थक ने संता से पूछा, "अंकल, आप क्या सोच रहे हो...?"
संता ने जवाब दिया, "बेटे, आज फिर गिरना पड़ेगा..."
...और संता फिर गिर गए...
अगले दिन उन्होंने सड़क पर दो छिलके पड़े देखे, और फिर सोच में पड़ गए...
सार्थक के फिर से सवाल करने पर बोले, "मैं सोच रहा हूं, इस पर गिरूं या उस पर..."
...और अगले दिन संता को बहुत-से छिलके दिखे, सो, बिना सोचे उन्होंने पत्नी को फोन किया, और बोले, "मेरी जान, मैं आज घर देर से आऊंगा..."
चुटकुला ऐसी संज्ञा है, जिससे कोई भी अपरिचित नहीं... हंसने-हंसाने के लिए दुनिया के हर कोने में इसका प्रयोग होता है... खुश रहना चाहता हूं, खुश रहना जानता हूं, सो, चुटकुले लिखने-पढ़ने और सुनने-सुनाने का शौकीन हूं... कुछ चुनिंदा चुटकुले, या हंसगुल्ले, आप लोगों के सामने हैं... सर्वलोकप्रिय श्रेणियों 'संता-बंता', 'नॉनवेज चुटकुले', 'पति-पत्नी' के अलावा कुछ बेहतरीन हास्य कविताएं और मेरी अपनी श्रेणी 'शरारती सार्थक' भी पढ़िए, और खुद को गुदगुदाइए...
Friday, December 11, 2009
सार्थक, संता और केले के छिलके...
कीवर्ड अथवा लेबल
Jokes,
Saarthak Rastogi,
Vivek Rastogi,
केले के छिलके,
चुटकुले,
विवेक रस्तोगी,
शरारती सार्थक,
संता-बंता,
सार्थक रस्तोगी
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment