विशेष नोट : काका हाथरसी बहुत छोटी-सी आयु (मेरी ही आयु की बात कर रहा हूं) से ही मेरे पसंदीदा हास्य कवि रहे हैं... आकाशवाणी के कार्यक्रमों को सुनने वाले जानते हैं कि उनकी कुण्डलियां बेहद प्रसिद्ध रही हैं... ऐसी ही दो कुण्डलियां उन्होंने देश में हिन्दी की हो रही दुर्दशा पर भी लिखी थीं, जो आज kavitakosh.org से आपके सामने लेकर आ रहा हूं...
बटुकदत्त से कह रहे, लटुकदत्त आचार्य,
सुना, रूस में हो गई, है हिन्दी अनिवार्य,
है हिन्दी अनिवार्य, राष्ट्रभाषा के चाचा,
बनने वालों के मुंह पर, क्या पड़ा तमाचा,
कहं 'काका', जो ऐश कर रहे रजधानी में,
नहीं डूब सकते क्या, चुल्लू भर पानी में...
पुत्र छदम्मीलाल से, बोले श्री मनहूस,
हिन्दी पढ़नी होये तो, जाओ बेटे रूस,
जाओ बेटे रूस, भली आई आज़ादी,
इंग्लिश रानी हुई हिन्द में, हिन्दी बांदी,
कहं 'काका' कविराय, ध्येय को भेजो लानत,
अवसरवादी बनो, स्वार्थ की करो वक़ालत...
चुटकुला ऐसी संज्ञा है, जिससे कोई भी अपरिचित नहीं... हंसने-हंसाने के लिए दुनिया के हर कोने में इसका प्रयोग होता है... खुश रहना चाहता हूं, खुश रहना जानता हूं, सो, चुटकुले लिखने-पढ़ने और सुनने-सुनाने का शौकीन हूं... कुछ चुनिंदा चुटकुले, या हंसगुल्ले, आप लोगों के सामने हैं... सर्वलोकप्रिय श्रेणियों 'संता-बंता', 'नॉनवेज चुटकुले', 'पति-पत्नी' के अलावा कुछ बेहतरीन हास्य कविताएं और मेरी अपनी श्रेणी 'शरारती सार्थक' भी पढ़िए, और खुद को गुदगुदाइए...
Thursday, October 14, 2010
हिन्दी की दुर्दशा... (काका हाथरसी)
कीवर्ड अथवा लेबल
Jokes,
Vivek Rastogi,
इंग्लिश,
काका हाथरसी,
चुटकुले,
विवेक रस्तोगी,
हास्य कविताएं,
हिन्दी,
हिन्दी की दुर्दशा
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment